चंद्र सिंह राही- “फवा बाघा रे”, “चैता की चैत्वाली”

नरेंद्र सिंह नेगी

“राही जी के निधन ने उत्तराखंड के संगीत और संस्कृति क्षितिज में एक अपूरणीय शून्यता पैदा कर दी है। वह पहाड़ी राज्य के सैकड़ों सदियों पुराने लोक गीतों को पुनर्स्थापित करने और संरक्षित करने के लिए लगभग अकेले ही जिम्मेदार थे।”

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